नवसृजन का आरंभ........
नवसृजन का आरंभ........
नवनिर्माण नव सृजन का आरंभ जिसने आजमाया।
वो बूँद बन के जिंदगी के लिये गर्भ में था समाया।
पलछिन सा जी उठा हर लम्हा जो था उसने खोया।
गर्भ में ही जिंदगी के लिये गहरी नींद में था सोया।
बूँद-बूँद तरसा जीवन को वो हसरतों का खुमार यूँ छाया।
जीवन से परे कुछ आशाओं की मिली थी ऐसी मोह-माया।
मासूमियत से सराबोर वो बन के खुशियों का साया।
किसी ने जिंदगी दाँव पर लगाकर जिस को है पाया।
वो नन्हा सा फ़रिश्ता बन के घर आँगन जिसने महकाया।
वो मासूम सी हँसीं ने हर एक को बड़े प्यार से बहकाया।
