नव वर्ष की भोर
नव वर्ष की भोर
आज प्रभात बेला में अवलोकन किया
द्रुमों ऊपर उदित देव समुद्यन् का,
अनन्तकिरण सुशोभित रश्मिमन्त का,
सर्व मंगल मॉंगल्यं देवासुरनमस्कृतं का।
अविस्मरणीय अद्भुत अनुभव मिला,
विस्मृत न किया जा सकनेवाला।
रवि का सतत जागरण का सन्देश,
परहित कर्म संलग्न होने का संदेश।
स्वर्णिम आभा मंडित ज्योति किरणें,
द्युरत्न से चलकर मुझ तक आईं थीं,
कितनी तो दूरी तय कर आईं थीं
पर लगा जैसे पल भर में आईं थीं।
जगमग मेरा सम्पूर्ण परिवेश हुआ,
जगमग आलोक किरण विस्तारित हुईं,
मेरी और अंशुमाली की दूरी दूर हुई
रवि-किरणों के द्युतिमन्त स्पर्श से।
नव वर्ष का सुवर्णसदृश विहान
चमके दिवाकर तेजराशि सा,
संदेश लाता उज्ज्वल भविष्य का,
सब ओर विस्फुरित आह्लाद का। ।