उम्मीद की रोशनी
उम्मीद की रोशनी
हम अपने लिए नहीं ,
अपनों के लिए जीते हैं।
घाव भी दे अपने तब भी,
केवल अपनों के लिए ही जीते हैं।
हर टीस में आहें भरते हैं,
हर दर्द में चुपके से रोते हैं।
ना जाने फिर भी क्यों,
हम अपनों के लिए रोते हैं।
अपना कोई अस्तित्व नहीं,
ना ही अपनी मर्यादा को ढोते हैं।
अपनी इच्छा ना आकांक्षा,
सब अपनों के लिए ही होते हैं।
यहां अपना जिसे हम कहते हैं,
वे स्वयं के जाये होते हैं।
इसके आगे की सोच नहीं अपनी,
यूं मानव-मूल्यों को खोते हैं।
विचित्र माया का पर्दा है,
आंखों में धुंध से होते हैं।
रिश्तों के परे कोई दिखता ही नहीं,
चाहे सामने कोई मर रहे होते हैं।
वो जीवन भी क्या जीवन है,
जो केवल अपनों के लिए होते हैं।
जीवन तो उसका जीवन है,
औरों के लिए जो जीते हैं।।