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DIVYANK JAIN

Inspirational

5.0  

DIVYANK JAIN

Inspirational

पहली उड़ान

पहली उड़ान

3 mins
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उड़ने को बेताब वो एक डाल पर था बेठा ,

कदम आगे बढ़ाए और गहरी सांस था लेता।

किनारे पर , डाल जब हिलने लगे,

कदम फिर उसके पीछे हटने लगे।


हवा के झोंको से था वो डरता,

गहराई देख आँखे बंद था वो करता। 

रात को कल जब काले बादल थे छाये,

सिर दबाए पंखो में वो पल पल घबराए।


चमकी बिजलीयां आसमां गड़गड़ाये,

कांपे पैर उसके, पंख उसके थर्रथराये।

सोया क्या वो क्या वो जागा,

जान बचाये, बार बार घोसले में भागा।


हवा के झोकों ने उसके घर को किया तिनका तिनका,

बचपन की यादे बिखरी , क्या वो नन्ही चोंच में बिनता।

भाई, बहन, दोस्त यार सब उड़ चले समंदर पार

अकेला करता रहा ना जाने किसका इंतज़ार।


वो रोया, कहराया, चिल्लाया, गिड़गिड़ाया

पर लौट कर वापस नही कोई आया।

पत्ती पत्ती उड़ने लगी पेड़ो की, डालियाँ उलझने लगी

बेरहम बारिश की बूंदे जब आसमा से बरसने लगी।


कमजोर हुई एक डाली तो दूसरी डाल वो चढ़ा

हौसला मन मे भर वो एक एक कदम आगे बढ़ा।

दुबक कर बैठ गया था वो एक मोटी सी डाल पर,

शक उसे अब होने लगा अपनी ही फुदकती चाल पर।


तोड़ दिए थे उसने हिम्मत के सारे वादे,

बची थी उसके पास तो बस बचपन की कुछ यादें।

एक दिन दादी ने उसे सुनाया था एक किस्सा,

जब चुग रहा था माँ की चोंच से वो अपना हिस्सा।


उड़ रहे थे तुमारे दादा और फिर छाया घना अंधकार

उडते उड़ते ही बेखबर बन गए वो एक गिद्द के शिकार।

पूछा उसने, पंछियो को ही क्यो ये सजा ?

मुस्काई दादी , बेटा ! इससे परे ना कोई दुजा मजा !


पार उन पर्वतों के है असीम नीला गगन,

ठंडी पवने करती है जहाँ हमसे आलिंगन

आँखे मूंद उड़ने से बेहतर कोई कला नहीं !

गोते खाता है मन और नाचे सारा बदन।


कही समंदर, कही बर्फ़ तो कही है रेत,

कही सुनहरे अनाजों के है विशाल खेत।

जब भी लगती भूख पेट भर वो खाते,

मीठे-मीठे पानी से प्यास वो बुझाते।


सपने हमेशा देखे थे उसने नीलगिरी की चट्टानों के,

पर कैसे लड़े वो अब इन क्रूर तूफानों से। 

शब्द एक एक उसने मन मे फिर दोहराये,

जो कभी पिता ने गोद मे बिठा उसे थे सिखाये।


साल भर उगते मीठे फल, कीड़े बुनते हैं रेशम,

पर एक दफा जरूर बिगड़ता ये कमबख्त मौसम।

मत घबराना तुम जब तरुवर सारे जब हिलने लगे,

उड़ जाना चहचाहट भाई बहनों की दुजे से मिलने लगे।


मेघों के पार भी जाता है हमारा एक रास्ता,

तूफानों से तो हम पंछियो का जन्म जन्म का वास्ता।

पिता ने चौड़े पंख पसारे और फिर थोड़ा थे अंगडाये,

बोला वो , कहा चले आप अभी-अभी तो थे आये ?


कोमल सिर सलहा कर किया उन्होंने आश्वस्त !

लौट आऊंगा इससे पहले की सूरज होगा अस्त।

कई अस्त हुए सूरज और कही हुए उदय

पर पिता उसके फिर लौट नही थे आये।


बस आई थी तो उनकी याद , और आंसू उसने टपटपाये,

आँखो के आड़े उसकी कोरी धुंध ही धुंध अब छाये।

धूल उड़ी चारो ओर तो वो अपनी आँखें मलने लगा,

रोशनी सरकती चली और फिर सूरज ढलने लगा।


आसमान में ,काले मोटे दानव फिर आने लगे,

साथ साथ भूखे गिद्द भी अब मंडराने लगे।

उड़ जाना ही बस एक मात्र बचा है उपाय,

नही है अब कोई चारा इसके बजाय।


हिम्मत बांध, धीरे धीरे वो आगे सरका,

एक बार फिर उसने उचाई को परखा।

फैलाये पँख तो लडखडाये उसके पंजे 

लाख कोशिशें पर तोड़ ना सका वो अपने शिकंजे।


मत रोक खुद को हो जाने दे जो है होना 

सब कुछ तो गया अब भला क्या है खोना।

कर आँखे बंद , कर खुद को तूफानों के हवाले

कब तक गिसे इन पैरो को, पड़ने लगे इनमे भी छाले।


एक दिन उड़ना ही तेरी तकदीर है 

पंजो में तेरे भी उड़ने की लकीर है।

दोड़ पड़ा वो जब भूल गया जीने की आस

कोसा खुद को, होता ना में कोई पंछी काश।


फैलाये जब उसने पंख, हवा टकराने लगी

मौत के ख्याल आये और जिंदगी कतराने लगी।

अचानक गिरा था वो इतनी रफ्तार से 

जब टकराया पेर उसका बिजली के एक तार से।


मर जाएगा वो अगर हो गई उसकी जमीन से टक्कर

नुकीली चट्टाने थी नीचे और तीखे तीखे पत्थर।

कर आँखे बंद पंख वो फड़फड़ाने लगा 

एक इंच बचा था और वो अब उड़ने लगा।


देख कर खुद को भी वो था अब हैरान ,

आखिर भर ली थी उसने अपनी पहली उड़ान।


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