नव-कल्पना
नव-कल्पना
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
उड़ चले तोड़ बंधन जीर्ण रुढि के
ले संदेश नवल वर्ष का
सुख समृद्धि विश्व शांति का
पर हैं नए ,नई उमंगे
श्रम सीकर से नई दिशा तलाशेंगे
राह में आई स्याह घटाओं को
भेदा भावो की दूरी को
निज यत्नो से धवल बनाएंगे
हर उर में समता दीप जलाएंगे
जहाँ न होगी भूखमरी लाचारी
न होगी दहेज की मारी अबला बेचारी
न होगा दुश्मन भाई -भाई
मानवता देगी जहां दुहाई
समा जाए हर अंतः में सृष्टि सारी
यही चिर कामना है हमारी ।।
