नन्ही सी गुड़िया
नन्ही सी गुड़िया
मेरी नन्ही सी गुड़िया की पहली गूंज,
मेरे जीवन की वो है एक ज्योति पूंज।
क्या लिखूं? क्या कहूँ? कवि मन को नहीं है भान,
शब्दों की एक लड़ी सी लगती है उसकी मुस्कान।
वो भाव है, वो छंद है, वही अलंकार भी,
प्यारी सी रजामंदी में थोड़ा सा इनकार भी ।
घर आंगन में फुदकते पाँव में नूपुर की झंकार भी,
रिश्तों में प्यार की डोर सी मेरी प्यारी गुड़िया।
आशाओं की नयी भोर सी मेरी प्यारी गुड़िया ।।