मेरी दुलारी
मेरी दुलारी
सब दुखों से अनजान
अपनी ही दुनिया है उसकी,
थिरकते पैरों की ढुलमुल चाल में
गिरती-संभलती
आत्मविश्वास से सराबोर
उसकी आँखों में न ईर्ष्या,
न द्वेष, न तेरा, न मेरा,
उसकी बातों में अपनेपन की महक
उसकी हँसी में चिड़िया सी चहक
प्यारी सी मुस्कान पर भला कौन न ठहरे
फुदकती है वह यहां से वहां,
उस पर कैसे पहरे
कौन कहता है बेटियाँ बोझ होती है?..... 2
उसके, बिना न जाने कैसे रोज (दिन) होती है।
सुबह की ठंडी हवा
तो रात की लोरी है वो
सबसे प्यारी, मेरी दुलारी,
लक्ष्मी-दुर्गा-शारदा-किशोरी है वो।
