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Jagrati Verma

Inspirational

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Jagrati Verma

Inspirational

नजरिया

नजरिया

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मेरी खिड़की के दूसरी तरफ मुझे जाना मना था

छोटा सा कमरा मेरा मेरी दुनिया था

वैसे भी खिड़की के उस पार दुनिया बड़ी डरावनी थी

खुशियाँ, रंग, उजाला, कहकहे - वहाँ सारी कमी थी

न डर किसी का - इतनी आजादी भी कहीं उचित थी

वो दुनिया भी कैसी जो इतनी व्यवस्थित थी

कभी कभी सोचती कि देखूँ कि बाहर की दुनिया कैसी होगी

मेरे छोटे अंधेरे कमरे से बेहतर तो नहीं पर शायद इसके जैसी होगी

एक दिन मैने खुद को निहारने आइना उठाया

मैं जोर से चिल्लाई मैने खुद को अलग पाया

मेरा चेहरा जो कल रात तक निखरा था

आज देखा तो दागों से भरा बिखरा था

फिर महसूस किया कि सब तो सही था

दाग धब्बों जैसा कुछ भी तो नहीं था

नज़र का कुसूर नहीं, मेरा नजरिया झूठा था

शक्ल बेशक बेदाग थी, वो तो आइना टूटा था

खिड़की के उस पार की दुनिया मुझे अचानक अच्छी लगने लगी

जो बचपन से सच समझाया था उससे ज्यादा सच्ची लगने लगी

डराकर रखा मुझे और खुशियों को फिजूल बताया था

रंगों में रंज छुपे होते हैं, यही सिखाया था

पर उस दिन मै खिड़की के उस पार गई

मै लड़ी सबसे, सारी बंदिशे भी हार गई

दूर उड़ते जिस पंक्षी को देखती थी, उससे ऊंची मेरी परवाज़ थी

मेरी जिंदगी में भी रंग थे, मैं खुश थी, मैं आजाद थी।


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