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Twinckle Adwani

Tragedy

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Twinckle Adwani

Tragedy

नजर नहीं आती

नजर नहीं आती

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उठते ही देख घड़ी,हडबडा जाती हूं

न चिल्लाए कोई उसके पहले पहुंच जाना चाहती हूं


ना कोई कहता खाना खा लो 

ना पूछता ,क्या खाओगी

खुद ही अपना ख्याल रखते जाती हूं


कोई चीज खुशी से दिखा नही पाती हूं 

हिसाब किताब रखती हर वक्त 

कमाती नहीं ,महंगाई है ..शर्मिंदा कर जाती है।

ढूढती हूं ,मां...तलाश अधूरी रह जाती है


न खुशी न गम बांट पाती हूं 

बस भावहीन होकर संबंध निभाती हूं

आजादी दी है कहकर शब्दों के बाण चलाती हैं।

बीना सम्मान के आत्मसम्मान जीने की बात कह जाती है।

क्या नारी नारी को समझ पाती है,क्या उसका साथ निभाती है ?

तुलना, पैसे मे वो उलझ जाती है 

ढूढ रही हूं मां ,माँ नजर नहीं आती है 

नजर नहीं आती है ,नजर नहीं आती है ।


जिनको क़द्र नहीं मेरी 

उनके लिए मौन हो जाती हूँ

बस यहीं शब्दों मे बह जाती हूं

कहा है मां ,मुझे नजर नहीं आती 

नजर नहीं आती.......



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