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Hrishita Sharma

Abstract

4.2  

Hrishita Sharma

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नजर का नहीं नजरिए का फर्क

नजर का नहीं नजरिए का फर्क

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अपने घर की लड़की और पराए घर की लड़की में

नजर का नहीं नजरिए का फर्क है

अपने घर की बेटी को कोई गैर देखे तो खून खौलता है

दूसरे की बेटी को देख ईमान डोलता है


अपनी बहन की रक्षा करना भाई का धर्म

दूसरे की बहन को घूरे तो लड़को वाले कर्म

अपनी बेटी से हुई बदतमीजी तो नहीं बर्दाश्त

दूसरे की बेटी को छेड़े खुद का लड़का तो कहेंगे शाबाश


रेप की खबरें सुनकर खुद की लड़कियों की चिंता

दूसरे की लड़कियों के कपड़ों की लंबाई गिनता

खुद की बेटी में देखे देवी का रुप

दूसरे की बेटी को समझें सामान के स्वरूप


खुद के घर की लड़कियों के लिए अच्छे शब्द सुनना है

दूसरे की लड़कियों के लिए जहर ही उगलना है

क्यूं खुद की बेटी सम्मान दूसरे की बेटी खिलौने समान

क्या खुद के घर की लड़की और दूसरे की लड़की मे फर्क है


ऐसा कुछ नहीं है दोस्त ये तो सिर्फ नजरिए का फर्क है।


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