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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics Inspirational Others

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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नियति

नियति

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🌌 नियति 🌌
( एक जीवन दर्शन काव्य )
 ✍️ श्री हरि
📅 1.08.2025

 नियति — वो अदृश्य लेखनी है,
जो भाग्य की पुस्तक पर मौन लिखती है,
राजतिलक के मंडप में दीप जला कर,
वनवास की छाया भी साथ रखती है।

 जब अयोध्या सजी थी मंगल गान से,
सिंहासन पर राम की आरती उतारी जा रही थी,
तभी नियति ने हल्का-सा पृष्ठ पलटा —
और जय श्रीराम! के स्वर में वनगमन! की प्रतिध्वनि आ गई।

 हाँ!
सर्वशक्तिमान भी नियति के चरणों में समर्पित हो जाते हैं,
और वहीं से आरंभ होता है — मनुष्य का देवत्व बनने का पथ।

🔱 लक्ष्मण रेखा की रेखा नहीं — नियति का संकेत थी,
जिसे सीता ने लांघा नहीं, बल्कि समूचे युग को एक शिक्षा दी — कि मर्यादा के बाहर की जिज्ञासा, प्रलय के भीतर की प्रतीक्षा है।

🛡️ भीष्म! —
जिनकी प्रतिज्ञा से गंगा भी थम गई थी,
नियति ने उन्हें शर शैय्या दी,
और अमरतुल्य जीवन को
पीड़ा की अग्नि से तपा कर,
विवेक की तपोभूमि में विलीन कर दिया।

 🏹 अर्जुन —
जिनके गांडीव से देव भी डरते थे,
वही अर्जुन, जब भीलों ने गोपियों को लूटा,
तो हाथ बाँधकर देखते रह गए —
क्योंकि नियति जब देखना चाहती है,
तो हाथों से शक्ति और आँखों से साहस छीन लेती है।

 🕉️ राजकुमार सिद्धार्थ —
महलों की सुवास में पले,
पर जब नियति ने करवट ली,
तो बुद्ध बनकर सारी सृष्टि की पीड़ा का स्पर्श कर लिया।
पर पीछे रह गई यशोधरा —
विरह की देवी, समय की संतति —
जिसे बुद्ध भी न लौटा सके।

 🏹 **एक तीर — राणा सांगा की आँख नहीं चुराई,
बल्कि भारत की स्वतंत्रता की
एक संभावित सुबह चुरा ले गया।**

नियति ने युद्ध के मैदान में
साहस की थाल से एक क्षण चुराया —
और इतिहास की धारा पलट गई।

 🍂 महाराणा प्रताप —
मेवाड़ की मिट्टी का स्वाभिमान,
नियति ने उन्हें सोने के महल नहीं दिए,
घास की रोटियाँ दीं,
पर उनके आत्मबल को कोई अकबर झुका न सका।
यह मोड़ नहीं था, यह इतिहास की रीढ़ थी।

 🇮🇳 सरदार पटेल —
जिनकी लोहवाणी से रियासतें काँपीं,
जब लोकतंत्र के सिंहासन पर चढ़ने का क्षण आया,
नियति ने एक पृष्ठ फिर मोड़ दिया —
और सत्ता की मूरत किसी और के नाम हो गई।

 ✈️ सुभाष — जिनकी हुंकार से विदेशी साम्राज्य हिलते थे,
वही नेताजी नियति के सबसे गहरे कुहासे में खो गए —
उनकी अग्नि जलती रही,
पर लौ को इतिहास ने अनदेखा कर दिया।

 🌿 और तब समझ में आता है —
कि मनुष्य का बल, बुद्धि और संकल्प —
सब नियति के अधीन हैं। क्योंकि…

 🌌 नियति न गोविंदस्य वशे, न कालस्य सीमिते।
वह अदृश्य है — पर हर दृश्य का केंद्र है।

 🕊️ अंतिम श्लोक — नियति का समर्पण
 जिन्हें लगता है कि वे स्वयं रचयिता हैं,वे भ्रम में हैं।
नियति वह श्वास है जो हमसे बिना पूछे चलती है,
और वही गति है, वही गति-अवरोध — वही जीवन का सार है।       


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