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Anita Sharma

Romance

4  

Anita Sharma

Romance

निश्छल प्रेम

निश्छल प्रेम

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दो दिल जुड़ते हैं

जब पूरी ईमानदारी से

चंचलता निरंतर जवान होती हैं

सच्चा साथी किसी भी रूप में हो 

बस विश्वास की कड़ी 

उसे जोड़े रखती हैं


कोई बंधन नहीं होता उनमें 

न किसी मुखौटे की छाप होती हैं

बात ईमानदारी की हो

तो प्रेम से बढ़कर 

कौन सा भाव ऐसे में

परिभाषित कर सकता हैं 

इसी भावनाओं के समुन्दर में 

सच्चाई से गोते लगाओ 

तो जीत होती हैं!


बेईमानी कहाँ विश्वास के

रिश्तों के बोझ ढोती हैं

वो तो रोज़ बिकती हैं 

झूठ की तलवार लिए 

हाथ मिलाये तो भी 

पीठ पीछे खंजर चुभोती हैं


सदियों से मिलते हैं 

उदाहरण ऐसे निस्वार्थ प्रेम के 

मिलतीं हैं हज़ारों ऐसी मिसालें,

निर्मल प्रेम भाव की 

तब भी जलती मशालें 

भावविभोर भक्ति और प्रेम 

जिसमें किंचित भी स्वार्थ नहीं


हनुमान की भक्ति 

सबरी का वात्सल्य 

सुदामा की मित्रता 

भरत का समर्पण

और मीरा सी दीवानगी 

कितने सुन्दर सच्चे प्रेम के 

भाव थे इनमें जो 

जीवंत हैं आज भी


किसी से प्यार हो जाना

बेहद सुखद अनुभूति हैं

खुशनुमा अहसासों में

डूबकर कल्पनाएँ सोती हैं

आलिंगन किये रहते हैं

उमड़ते जज़्बात हर पल

ऐसा सच्चा प्रेम जहाँ

पूर्णतः भावनाएं निश्छल


दूर होकर भी ये वियोग

कभी नहीं अपनाते हैं

सच्चे प्रेमी विरह में भी

मिलन के ख्वाब सजाते हैं

ऐसे अनुरागी और विश्वासी 

हर पल साथ निभाते हैं

ऐसा अटूट प्रेम जब कभी

दो आत्माओं को मिलाता है

जन्मो जन्मों तक के लिए

प्यार अमर हो जाता है!


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