STORYMIRROR

pawan punyanand

Abstract

4  

pawan punyanand

Abstract

निर्भया

निर्भया

1 min
594

न्याय अगर पड़े माँगना,

सच करे घूँघट ओढ़

झूठ का सामना,


तब न्याय का क्या अर्थ रह जाय,

जब झूठ सीना ताने,

सच अँधेरे में मुँह छुपाये,

तब सोचो तुम,

वो स्त्री तुम्हारी भी,


माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी है,

जिसके कारण तेरे घर में रौशनी है।


हम क्यों पशु से बदतर हो रहे,

जहाँ, पूज्य थी कभी वो

क्यों उसे जलना पड़ता है,


बिना कपड़े चोराहे पर,

नंगा घूमना पड़ता है,

एक नही हजारो निर्भया,

न्याय मांगती होती है,


किनकी आँखे ,

देख उनको नही रोती है।

कब तक ऐसा होगा,

कलंकित ये भूमि भारत की,


कब तक हम सहेंगे।

वो गौरव वो समाज ,

जहाँ स्त्री ना भोग्या हो ,

वो सबकी पूज्या हो,


पवित्रता जिसका धर्म है

लाना स्वर्ग घर में,

जिनका कर्म है

हम समझे,हम सोचे,हम बदले

करे प्रण मिलकर आज,

ना हो, अब खंडित


स्त्री का लाज।

करे फिर भी कोई अगर गुनाह,

सजा मिले उसको ऐसी,

तड़प उठे ,आत्मा उसकी


सौ-जन्मों तक

फिर ना छेड़ पाए कोई बेटी।


साहित्याला गुण द्या
लॉग इन

Similar hindi poem from Abstract