निराश
निराश
होकर यूं निराश तू, किन गहराइयों में जा रहा है
लौट आ ए मुसाफिर, तुझे साहिल बुला रहा है
उड़ना भी सीख लेंगे, जो चलने का मज़ा लिया है
हौसलों को बना पंख, तुझे आसमां बुला रहा है
कदम बढ़ा कर देख, तुझे ज़मीं भी छोटी लगेगी
क्यों हुआ हताश तू, क्यों खुद को भुला रहा है
ज़ख्म इतने भी नहीं गहरे, की भरे न जा सके
वक़्त दे जरा वक़्त को, क्यों दिल को रुला रहा है