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Jyoti Agnihotri

Abstract

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Jyoti Agnihotri

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नीरवता

नीरवता

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इस नीरवता में जीवन सिकुड़ा बैठा है,

सन्नाटे की चादर में ख़ुद को,

क्यों मुझसे छिपाये बैठा है।


अगर जानता कि ज़िंदगी ,

इतनी बेजार हो सकती है।

तकलीफों के शोर में भी,

इतनी शान्त हो सकती है।


तो निरर्थक प्रयासों से ,

मैंने खुद को यूँ

ठगा न होता

इतना ही भर जो

जान जाता तो शायद

स्वार्थों से रिश्ता यूँ

बुना न होता ।


जो जान जाता

अन्त में जीवन

वीरान बंजर मरुभूमि है

तो न सुनता खुद की

जो मुझसे हमेशा ही

कहता रहा है कि

नहीं जी सकता अभी

कि मेरी अभी बहुत-सी

जिम्मेदारियां अधूरी हैं।


ये नीरवता मुझे

अंदर तक है घेरती रही

डराती है मुझे ये अस्त-व्यस्तता

और छनती हुई रौशनी

जिसमें नहीं है ज़िन्दगी कोई।


हो सके तो,

इसे कुछ और टाल दो,

मुझे कुछ और साँसें उधार दो।


संजीदगी के नकाब में

खुद को सदा ही

अकेला कर लेने वाला

मैं नहीं अकेला

रहना चाहता हूँ

अभी तो मैं कुछ और पल

नितान्त खुशी के

जीना चाहता हूँ।


मुझे कुछ और साँसें उधार दो

हो सके तो मुझे अपने

साथ-प्यार-जीवन

का उपहार दो।


इस नीरवता में जीवन सिकुड़ा बैठा है ,

सन्नाटे की चादर में खुद को ,

मुझसे क्यों छिपाए बैठा है।


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