STORYMIRROR

Kumar Vikash

Romance

4.4  

Kumar Vikash

Romance

नींद और ख्व़ाब के दरमियान

नींद और ख्व़ाब के दरमियान

1 min
116


नींद और ख्व़ाब के दरमियान ,

जीवन मानो जैसे

रूक सा जाता है !

जाने क्यों ऐ तन्हाई मुझे अब ,

तेरा ये आलम

बहुत भाता है !

दिन के शोरगुल से ये जिन्दगी ,

मुझे अब बोझल

सी लगने लगी है !

क्योंकि मेरा एक तुझसे मिलना ,

अब इस नींद और ख्व़ाब

के दरमियान ही हो पाता है !!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance