नींद और ख्व़ाब के दरमियान
नींद और ख्व़ाब के दरमियान
नींद और ख्व़ाब के दरमियान ,
जीवन मानो जैसे
रूक सा जाता है !
जाने क्यों ऐ तन्हाई मुझे अब ,
तेरा ये आलम
बहुत भाता है !
दिन के शोरगुल से ये जिन्दगी ,
मुझे अब बोझल
सी लगने लगी है !
क्योंकि मेरा एक तुझसे मिलना ,
अब इस नींद और ख्व़ाब
के दरमियान ही हो पाता है !!