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"मनमीत"

"मनमीत"

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तुम मेरी हो, मैं तेरा हूँ,

तुम धरती, मैं सवेरा हूँ,

दमक रही हो कंचन सी तुम,

मैं प्रेम प्रकाश सुनहरा हूँ।


अधर कमल कहीं ठहर गए थे,

प्रीत कथन को कहते-कहते,

मौन मोह के संध्या समय पर,

तुम तड़पी, मैं तड़पा हूँ।


बीत गया था मास मधु का,

तुम संग मिलन प्रतीक्षा में,

अगन अग्नि ताप व्याकुल था,

तुम जलती, मैं जलता हूँ।


सूख रहा था मिट्टी का मन,

तन संग उमंग अधूरा यौवन,

बरस रहा है भाव मधुर अब,

तुम भीगी, मैं भीगा हूँ।


मीत मेरे तुम रूप नहीं,

नहीं तुम काया नश्वर हो,

स्पंदन रगों में स्पर्श हुआ जो,

तुम सुर तरंगनी तन पर हो।


अभिलाषा मन कहता मुझको,

समेट लूँ मैं सार जीवन तुम,

सृजन करूँ "तनु" गीत अलौकिक,

तुम भाव मधुर मैं अक्षर हूँ।।


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