नीली आँखें
नीली आँखें
उसकी झील सी नीली आँखों का
आकर्षण .....
हमेशा से ही मुझे भाता था ...
उसकी आँखों में मुझे हमेशा ...
एक नया स्वप्न नजर आता था....
उसकी आँखों में विश्वास की चमक थी
हौसलों की बुलंदी थी ...
रूढ़ियों के प्रति आक्रोश था ..
देश के लिए प्रेम एवं जोश था !
उसकी झील सी नीली आँखें सिर्फ आँखें नहीं थीं
वह निरंतर आगे बढ़ने के लिए
दूसरों को प्रोत्साहित करती थीं
वह परिवार के लिए हौसला थीं
एक दृढ़ विश्वास भी उसकी आँखों का श्रृंगार था
वह अक्सर चुप ही रहती थी ...
उसकी आँखें सब कहती थी ..
कई बार उसकी आँखों की झील में
अश्रु कण भी .... मैं देखती थी
क्योंकि वह शब्दों का सहारा न ले पाती थी
ध्वनि उसके कानों तक नहीं गूंज पाती थी
हाथों के संकेतों से ही ...
जीवन की परिभाषा समझ पाती थी।
वह अपने हाथों से गज़ब के चित्र बनाती थी
मानो उसकी बनाई गई कलाकृति सजीव हो जाती थी
वह सधी हुई रेखाओं को खींचती थी ....
मानो आँसुओं से कला को सींचती थी..
उसके बनाए गए स्कैच ....बेमिसाल थे
कला की दुनिया में ...बहुत कमाल थे
रंग ऐसे कि मानो हूबहू आसमान का बना हो शामियाना
प्रकाश ऐसे कि चाँद को किराए पे लेकर
बल्ब की जगह ...
मानो लटका दिया ..
स्वर्ण के कंगन तो ऐसे लगते कि बनाए हो किसी स्वर्णकार ने ...साँचे में ढालकर बनाए हों ....
कल्पना को न जाने कैसे चमत्कार में
हूबहू ढालती थी ।
अपनी क़िस्मत में जो मिला ...
न किया उसका कभी गिला ....
बस वह अपनी खामियों को छोड़कर
अपनी खूबियों को ...
वह चित्रों को संवारती थी ..
उन चित्रों से मानो वह अपने दर्द को
रेखाओं और रंगों ..
में ढालती थी !
मैं अब भी उसकी आँखों में देखती हूँ ...तो मुझे उसकी
आँखों में आकर्षण ही नज़र आता है !
और मैं ईश्वर से मानो यही कहती हूँ कि ये सच है कि
तुम एक दरवाज़ा बंद कर देते हो ..तब कई दूसरे दरवाजे
खोल देते हो .....