STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"निःस्वार्थ मित्र"

"निःस्वार्थ मित्र"

1 min
409

दोस्तों के बस रह गये चित्र

कोई न रहा कृष्ण सा चरित्र

आज स्वार्थ के रह गये मित्र

कर्ण से मित्र, बस ख्वाब चित्र


मतलब निकला, काहे का मित्र

बनावटी हुए आज मित्र इत्र

गरीबों को कौन बनाये, मित्र

जिधर देखों उधर अमीर चित्र


जिसने खुद को बनाया मित्र

शूल महकाते, उसका चरित्र

प्रकृति से बड़ा न कोई मित्र

पेड़, पशु-पक्षी कितने पवित्र


इंसान छोड़, सबको बना मित्र

इंसां सबसे बड़ा मतलबी चित्र

जिसने बनाया साँवरा को मित्र

वो कभी नही हुआ, साखी दरिद्र


खुद को बना, साखी निःस्वार्थ मित्र

फिर किसी की जरूरत न पड़ेगी, मित्र

पत्थरों के ऊपर भी दिखेंगे, तेरे चित्र

गर भीतर शीशा रखा स्वच्छ पवित्र। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract