निगाहों का नज़राना
निगाहों का नज़राना
नज़राना तो नज़राना होता है,
फर्क तो देखने वालो की निगाहों का होता है,
किसी को आँखों के आँसू नहीं दिखते,
लेकिन होठों की हँसी जरूर दिखाई देती है,
किसी को दुःख नज़र नहीं आते,
लेकिन ख़ुशियाँ दिख जाती है,
खुद को तकलीफ़ हो तो आँसू बरसते है,
दूसरो को तकलीफ़ हो तो हँसी बसरती है,
खुद कुछ गलत करो तो सब चलता है,
कोई दूसरा गलत करे तो गुनाह बन जाता है,
खुद किसीसे प्यार करे तो वो प्यार है,
दूसरा करे तो प्यार करना पाप है,
हाथों पे लगे घाव को सब देख लेते है,
दिल पे लगे घाव कोई नहीं समझ पाता है।
वक़्त वक़्त की बात है इस दुनिया दारी में,
इन्सान को जो चाहिए होता है उसे वहीं दिखाई देता है।
