नदी
नदी
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मैं नदी हूं
निरवाधि हूं।
पहाड़ का श्रृंगार कर के
समुद्र की प्रेमिका बन जाती हूं।
भर लाती हूं
प्रेम बिद्वेस का
अनेक सम्पदा।
समय समय में
मा के रूप में
प्यार देती हूं
कभी कभी बाप का
शासन दिखाती हूं।
मैं रुकती नहीं
मैं थमती नहीं
क्योंकि
मैं नदी हूं
निरवाधि हूं।