आ बैल मुझे मार
आ बैल मुझे मार
आ बैल मुझे मार
क्या हो गया है इस जिंदगी को
काम करने को कुछ समझ
आता नहीं
करने जाओ तो
किसी को भाता नहीं।
ज़िन्दगी के पड़ाव
कुछ उथले-पुथले से है
करने जाता कुछ और
होता कुछ और है।
लड़ रहा हूं
हर एक से
थका नहीं हूं अभी तक
भड़कू कैसे अब किसी पर
किया- कराया भी खुद का ही तो है।
शब्द कम पड़ जाते है
मुंह से बस यह ही
बात निकलती हैं
आ बैल मुझे मार।
