नदी महान
नदी महान
निर्मल है मेरा बहता पानी
मुझसे ही तो है ज़िन्दगानी
पक्षी, पशु और इन्सान
सबकी हूँ इकलोती जान
सबकी प्यास बुझाती हूँ मैं
जीवन सुलभ बनाती हूँ मैं
मुझ बिन निकले सबके प्राण
मैं हूँ सबकी नदी महान
बूंदो को हूँ खुद में समाती
झरने,नालों को हूँ मैं अपनाती
छोटे, बड़े सब रूप है मेरे
पेड़-पौधे भी रहे मुझको घेरे
सबको देती हूँ जीवन दान
जिसका मुझको ना है अभिमान
मैं हूँ ऐसी नदी महान
लम्बी भी हूँ चौड़ी भी हूँ
कहीं ज्यादा कही थोड़ी भी हूँ
जंगलों में, पहाड़ो में हूँ
समतल और पठारों में हूँ
गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी
सरस्वती, सतलुज, रावी, ब्रह्मपुत्रा
कई नामों से मेरी पहचान
जानो मैं हूँ नदी महान
कुदरत
ने दिया मुझे निर्मल पानी
इंसान अब करते है मनमानी
कूड़ा करकट, जहरीले रसायण
फैंके मुझमे बनके अंजान
जहां तंहा पेड़ो को काटे
जमीन का सीना बेरहम खोदे काटे
फिर जो कुदरत करती कोहराम
करते हैं फिर मुझको बदनाम
अंजाम है सबका निश्चित होता
आया जो है वो है जाता
मुझको भी खुद को पड़ता है मिटाना
जाकर समंदर में मिल जाना
पर तेरी करनी से ऐ-इंसान
कहीं पहले ही मैं मिट न जाऊँ
मेरा पानी था अमृत जैसा
कहीं विष सी ना बन जाऊँ
मैं जो गयी तो तू क्या जी पाएगा
खत्म ये सब जीवन हो जाएगा
अब तो मेरा कहना मान
मुझ पर भी थोड़ा दे ध्यान
क्यूंकि मेरी सुन ऐ-बन्दे
मैं हूँ तेरी नदी महान
मैं हूँ तेरी नदी महान।