नदी की आत्म कथा
नदी की आत्म कथा
मैं इक सुन्दर चंचल बाला
बचपन मेरा बीता बहुत ही आला
मस्ती भरी थी मेरी जवानी चलती थी मैं बल खाती
झूमती और कुछ शर्माती हंसती गाती बढ़ती जाती
लिए आस पिया मिलन की
अपनी धुन में चलती जाती छमछम करती ,इतराती जाती
अल्हड़ की भांति मटकती जाती हंसती गाती बढ़ती जाती
लिए आस पिया मिलन की
कलकल करती जाती सबका मन बहलाती जाती
न मैं डरती न घबराती पहाड़ों से टकराती जाती
रुकना मैंने सीखा न था हंसती गाती बढ़ती जाती
लिए आस पिया मिलन की
कहीं कंकर कहीं बंजर रेगिस्तान कहीं सुन्दर उपवन
कहीं हरे भरे खेत खलियान सबको धोती अपने जल
से करती माला माल हंसती गाती बढ़ती जाती
लिए आस पिया मिलन की
दिन रैन मैं चलती जाती अपना काम मैं करती जाती
दो मट मिट्टी रोज़ जमाती जाती किसानो से दोस्ती
निभाती हंसती गाती बढ़ती जाती
लिए पिया मिलन की आस
इक मोड़ जो आता सब सखियाँ हम मिलती
ख़ुशी से झूमती और हम गातीं दिल का दर्द
इक दूजे से कहतीं अपना अपना हाल बयाँ करतीं
प्रेम भाव का नीर बहातीं लक्ष्य अपने को न भूलातीं
एक साथ हम गोता लगातीं जन्मों की हम प्यास बुझातीं
मिल जाती हम भव्य सागर में
पूर्ण होती है आस पिया मिलन की l
