नदी और नारी की एक ही कहानी
नदी और नारी की एक ही कहानी
नारी और नदी की एक ही है कहानी,
प्रकृति की हैं जो सुंदर निशानी,
अविरल धारा -सी ही बहती है नारी की भी जिंदगानी,
छोड़ो अपने उद्गम को, सजाना है किसी सागर की लहरों को,
परिमार्जित मार्ग में बहते जाना है,
अपने वेग से धाराओं को जन्म देते जाना है,
हरियाली का बन स्रोत अमृतधारा कहलाना है,
कई परीक्षाओं से गुज़र नदी की तरह नारी को भी
गंगाजल बन जाना है,
अपनी शांत- शीतलता का हर क्षण प्रमाण देते जाना है,
राह में आए रोड़ों से टकराकर कभी प्रचंड रूप भी दिखाना है,
लंबे सफ़र की निशानियां को,
अगली पीढ़ी के लिए धरोहर स्वरूप छोड़ जाना है,
अनंत में मिल फिर शून्य में खो जाना है।
एक नदी की तरह नारी का भी परिचय बन रहे जाना है।
