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Arun Gode

Abstract

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Arun Gode

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नौकरी

नौकरी

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नौकरी

धीरे-धीरे दिल में उतारने लगी थी छोरी,

तब नहीं थी प्रियतम के पास कोई नौकरी। 

जब मिली थी मुश्किल से सरकारी नौकरी,

रफू-चक्कर हो गई थी वो प्यारी छोकरी। 

 

रिश्तेदार दिखाने लगे थे तब छोकरी,

दिल में नहीं बैठ रही थी कोई डोकरी। 

 चाहिए थी उसे वही स्कूलवाली छोकरी,

कदम-दर-कदम पर तलाशी वो छोकरी। 

 

न था उसका कोई मोबाईल ,ना घर का पता,

शादी के बाजार में बेचारी हो गई थी लापता। 

जब मिली वो,तो बिगड़ा था पूरा नाक-नक्शा, 

आंखे चार करके बेचारी हो गई थी लापता।

 

 

 

न जाने कहाँ,क्यू, कैसे गूम हो गई वो छोरी,

उसे पसंद नहीं आर ही थी कोई भी गोरी। 

क्या था उसी छोकरी में ऐसी विषेश खूबी,

प्रेमी के दिल-दिमाग की गूम गई थी चाबी।

 

जिसे बनाना था, उसे अपनी बीबी,

बेचारी हो चुकी थी मुंहबोली भाभी।  

सदा रिश्ते तो बनाते-बिघड़ते सभी,

क्या इस जन्म में मिलेगी मनचाही बीबी?

 

 

अरुण गोडे

मौसम कॉलोनी, नागपूर .                                           

9890883959

 

 

 

 


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