नैया मेरी
नैया मेरी
छोटी सी यह नैया मेरी
निकली पुरजोश,
सीना तान
खेलने लहरों के थपेड़ों से
मैं हूं मांझी अपनी नैया की
मीत हम जन्मो जन्मो के
हमराज़ रहे
समन्दर की गहराइयों के
किनारे हैं दूर ,बहुत दूर
चारों ओर पानी ही पानी
लहरें चंचल मस्त कभी
शांत, गंभीर, नाराज़, उत्तेजित कभी
है छोर कहां, क्या खबर मुझे
अंधेरों उजालों में भी
फ़र्क नहीं दिखता
क्षितिज की अद्भुत रेखा हर ओर
पतवार धकेले पानी को पीछे
हर डर, हर आशंका को
उसके साथ साथ-
धुंधले पड़ गए अब चेहरे सारे!
भंवर की चपेट है मेरे लिए अगर
ग़म नहीं ज़रा भी मुझे-
डूबे किश्ती मेरी
ग़म नहीं, है अभय हस्त तेरा, मुझ पर
कब लौटूंगी, मैं क्या जानूं
तेरे हाथ थमा दी मैंने
जीवन की डोर
नैया तेरे हवाले, मैं निश्चिन्त !
तू है प्रकाश स्तम्भ मेरा,
मैं छोटी सी एक जान
कर दे दृढ़ निश्चय मेरा
जीवन का मैं रखूं मान!