नारी
नारी
सृष्टि जो रचती बसाती
यह न हो तो
धरा गगन मध्य
कुछ भी कभी नजर न आए
जितनी सुुुुनते हम किलकारी
खग जग हो या जंगल भारी
सब संभव जब संंग ईक नारी।।
सुनो पवन,गगन और भुवन में
नजर जो आता हल्का या भारी
सबको वह जन्माने वाली
थपका थपका कदम दे देेेती
लफ़्ज़ों से करवा देेेती यारी
सब संभव जब संंग ईक नारी।।
हर सीख होती जाती निराली
जब उम्र बढना रहता जारी
वचन कुुछ उसके भरकम भारी
नागवार गुजरते कभी कभी
पर जीवन से करवा देते यारी
सब संभव जब संंग ईक नारी।।
धरा नारी
प्रकृति नारी
शक्ति नारी
भक्ति नारी
मुक्ति नारी
युक्ति नारी
सनसनाती हवा नारी
धधकती शैैैैवालिनी नारी,
कुछ न उपजे बिन ईक नारी
सजा जग,सजीला जीवन
सब संभव जब संंग ईक नारी।।
