नारी स्वरूप
नारी स्वरूप
नारी तू,ममता की मूरत,
जग में तेरे,रूप अनेक।
बने चंडिका,बाला, बहना,
बसता, माँ स्वरूप,ही एक।।
फिर क्यों? मानव ने,अबला कह,
तेरा धूमिल,सम्मान किया।
अपनी शक्ति,को समरण कर,
तू शिव-शक्ति,स्वरूप ही एक।।
अपनी शक्ति को--
बन,नव दुर्गा,षोडस माता,
हर घर में,पूजी जाती है।
गर विपद-आपद,जग निहित हो,
मनु,गुंजन कहाई, जाती है।।
फिर क्यों ? अबला बन,अबला की,
अस्मत को पैरों,रौंद दिया।
नारी ही,नारी की दुश्मन,
हर घड़ी,जलाई जाती है।।
नारी ही नारी------
तू,जग-जननी,जग रक्षक है,
ममता की देवी,की मूरत।
तुझमें ही,लक्षित होती है,
ममत्व,विश्वास,स्नेह की सूरत।।
फिर क्यों ? स्रष्टा बन, सृष्टि को,
ईर्ष्या अग्नि में,झोंक दिया।
वर्चस्व, तेरी ममता,का हो,
जग,व्यापक हो,मोहिनी सूरत।।
वर्चस्व तेरी ममता---
बंधन तोड़ो,लाचारी के,
कुछ,ऐसा नाम,करो जग में।
सर्वत्र प्रेम की,वर्षा हो,
देवों की इस,कर्म-भूमि में।।
फिर क्यों? देरी हो,इक घड़ी,
सतयुग को,फिर से,लाने में।
ममता का आँचल पाने को,
फिर,होड़ उठी हो,देवों में।।
फिर क्यों देरी-------
ममता का आंचल---