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PARMOD KUMAR

Inspirational

4.5  

PARMOD KUMAR

Inspirational

नारी स्वरूप

नारी स्वरूप

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नारी तू,ममता की मूरत,

जग में तेरे,रूप अनेक।

बने चंडिका,बाला, बहना,

बसता, माँ स्वरूप,ही एक।।

फिर क्यों? मानव ने,अबला कह,

तेरा धूमिल,सम्मान किया।

अपनी शक्ति,को समरण कर,

तू शिव-शक्ति,स्वरूप ही एक।।

अपनी शक्ति को--


बन,नव दुर्गा,षोडस माता,

हर घर में,पूजी जाती है।

गर विपद-आपद,जग निहित हो,

मनु,गुंजन कहाई, जाती है।।

फिर क्यों ? अबला बन,अबला की,

अस्मत को पैरों,रौंद दिया।

नारी ही,नारी की दुश्मन,

हर घड़ी,जलाई जाती है।।

नारी ही नारी------


तू,जग-जननी,जग रक्षक है,

ममता की देवी,की मूरत।

तुझमें ही,लक्षित होती है,

ममत्व,विश्वास,स्नेह की सूरत।।

फिर क्यों ? स्रष्टा बन, सृष्टि को,

ईर्ष्या अग्नि में,झोंक दिया।

वर्चस्व, तेरी ममता,का हो,

जग,व्यापक हो,मोहिनी सूरत।।

वर्चस्व तेरी ममता---


बंधन तोड़ो,लाचारी के,

कुछ,ऐसा नाम,करो जग में।

सर्वत्र प्रेम की,वर्षा हो,

देवों की इस,कर्म-भूमि में।।

फिर क्यों? देरी हो,इक घड़ी,

सतयुग को,फिर से,लाने में।

ममता का आँचल पाने को,

फिर,होड़ उठी हो,देवों में।।

फिर क्यों देरी-------

ममता का आंचल---



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