नारी शक्ति
नारी शक्ति
मैं...नारी में सावित्री हूँ
वेदों में गायत्री हूँ
मैं....श्रध्दा भी, समर्पण भी
तुम्हारे सपनों का दर्पण भी।
कहीं...गंगा बनकर बहती हूँ
कभी...कोसी बनकर उफनती हूँ
जब जलती हूँ...तरसती हूँ
तब, रचना बनकर ढ़लती हूँ ।
धीरज बन मैं...धरती कहलाती
विद्रोही बन संहारक हो जाती
खतरों से मैं..खेलती आयी
विजेता बन, अब गौरव को पायी।
