नारी को नारी होकर रहने दो
नारी को नारी होकर रहने दो
अब तो मन नहीं लगता लिखने में
उस नारी को
उसकी विद्रोह को
अत्याचार को
संघर्ष को
क्या कभी प्रेम नहीं लिख पाऊंगी
निरंतर जो बहता उसकी मन से
बस मजबूर किया गया है
नेत्र से विरांगना होने की श्रोत बहने के लिए
कभी डूब कर देखो उसमें
ममता की नहर है
जो बहती बस प्यार करने वालों के लिए
जो बहती प्यार को निरंतर चाहत बनाने वालों के लिए।
कभी झाक कर देखो
नीले अंबर का जो रंग नहीं
उस आखों में और गाढ़ा नीला पन
अपना विस्तार होने का प्रमाण है
वो समंदर से ज्यादा गहरा होने का प्रमाण है
मैं अभी बोलूंगी प्रमाण नहीं ढूंढ कर
बस बह जाने दो खुद को
उसकी जज्बातों में
जो सुकून है कहां मिलेगा विद्रोह में
जो आनंद है कहां मिलेगा
उसे नारीत्व के पहचान दिलवाने में।
उसे बिना परिचय मांगे उसको
जानने की कोशिश करो कभी
वो तुम्हारे परिचय बनेगी
जैसे बनते आ रही है युग युग से
मां,पत्नी,बहन,प्रेमिका और अनेक
उसे दुर्गा,झांसी मत बनाओ
उसे सीता जैसे मजबुर मत करो
बार बार अग्नि परिक्षा देकर
भले ही अपनी पवित्रता को परखा गया
वो खरा सोना होकर उभरा
पर कहीं प्रेम की चमक उभान हो गई।
नारी को अब खुद अपने परिचय में जीने दो
उसे अगर बांधना है तो बांधों
वो बंध जाएगी प्रेम की पक्की डोर से
उसे बेवकूफ़ बना सकते हो
पर कभी ज्वाला को चिंगारी मत दो
उसे लाभा होने से पहले एक नदी सा बहने दो
उसे अपने आप में रहने दो।