नारी की अस्मिता
नारी की अस्मिता
नारी को अपमानित करने,
रक्त बीज शुम्भ निशुम्भ,
दुर्योधन या दुशासन,
आज भी जिंदा हैं ।
रक्त विपाशा और वासना ,
के पुजारी आज भी जिंदा हैं ,
नारी के आक्रोश की,
ज्वाला धधकती है ।
प्रगट हो अब तो दुर्गा,
जो संहार कर सकती है,
इस जलती ज्वाला में ,
कोई संहार कर सकती है ।
समूचे देश में आज ,
हा हा कार मच उठा,
निर्भया से हाथरस तक,
दिशाऐ चित्कार कर उठी।
उठो सीता ,उठो पद्मावती बाई,
उठो झांसी की रानी,
दुष्टों का संहार करने को ,
अब तुम्हारी बारी आई ।
तुरन्त उठो,तुरन्त मारों,
तुरन्त घातक बन जाओ,
आत्म सम्मान बचाने को,
रक्त पान स्वयं करो नारी ।