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सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

नारायणी

नारायणी

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वक्त का पहिया पलटा 

यकायक 

और जा ढकेल दिया 

किसी खाली पडे़ मैदान में 

जहां दूर -दूर तक कुछ नहीं था 

सिवाय आसमान के

फिर सामने से आते दिखे 

मुसीबतों के पहाड़ 

बडे़ -बडे़ पहाड़ 

एक ओर नाचती दिखाई दीं 

चुनौतियां  

अपनी ही धुनों पर

ठहाके लगाने लगी जिम्मेदारियां 

अनगिनत जिम्मेदारियां 

घेर लिया मुझ निहत्थी को 

वो खाली मैदान बन गया 

जैसे युद्ध का मैदान 

फिर मैंने देखा 

सुबक रहे थे एक कोने में 

मेरे सपने 

सिमटे से 

मैं डर गई 

बैठ गई उदासी की गोद में 

हार का जामा पहन 

बिना लडे़ ही 

फिर हौले से कानों में 

बोला किसी ने 

सुनो, "तुम डरो नहीं लड़ो "

"तुम नारायणी हो नारायणी "

भूल गई क्या ?

फिर गूंजने लगी वो आवाज 

चारों दिशाओं में 

"तुम नारायणी हो नारायणी "

वो चीखती गई 

गौर से देखा मैंने 

वो अन्तरआत्मा थी 

मेरी ही 

मैं उठ खड़ी हुई 

फिर मैदान छोड़ 

भागने लगे वो पहाड़ 

थरथराने लगी चुनौतियां

मेरी ओर आ खड़ी हुई 

जिम्मेदारियाँ 

और मुस्कराने लगे मेरे सपने 

और मैं भी...... 

  


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