नाराज़ शहर
नाराज़ शहर
रोज़गार के लिये शहर बदला तो शहर अपना नाराज़ हो गया।
जब वापस आने लगे वहाँ तो वो अब काफ़ी नासाज़ हो गया।
न यहाँ के रहे हम पूरे न वहाँ के हम हो पाऐ,
सड़कें सूनी ही हैं हर जगह फ़िलहाल,
वो सिग्नल भी बन्द आवाज़ हो गया।
ये शहर तो काफ़ी रूठा सा लगता है!
"ज़रूरत थी मेरी तो थे यहाँ, अब ज़रूरत पे आये हो।"
शायद ऐसा ही कुछ कहता सा लगता है। ।
अब डर है कि वापस वो दूसरा शहर अपनायेगा ?
जिसको छोड़ने में रोये थे जब वो बिगड़ गया,
तो जहाँ से भाग आये, वो वापस देख मुस्कुरायेगा ?
वहाँ तो अब नये चहरे होंगे, शायद बदले औ
अब कौन तुम्हे समझायेगा ?
अब शहर भी बोलेगा उम्मीद मत रखना मुझसे,
पता है समय बुरा होने पर तू फिर भाग जायेगा।