STORYMIRROR

Shakshi Kumari

Abstract Inspirational Children

4  

Shakshi Kumari

Abstract Inspirational Children

नादान परिंदे

नादान परिंदे

1 min
258

खुले मन के साथ आसमान में उड़ता है,

सब को अपना दोस्त अपना हमराज मनता है।


क्यों भुल जाता है तू ये आसमां का अंत नहीं,

हर बादल में घातक चिल बैठा है।।


तू नादान है अभी अपनी दिल की तरह,

हर नीले रंग को अपना जहान मानता है।।


हौसलों को तू साथ लेके जब ए परिंदे उड़ान तू भरता है,

तो आधे रस्ते में जाकर क्यों तू अंजाना हमसफ़र चुनता है।


क्यों भुल जाता है कि ये चेहरे अनेक रखते हैं,

कब फैक दे ऊपर से मन में ऐसे द्वेष रखते हैं।।


भूल जाता है तू उड़ान में अपनी माँ की बातें,

तू नादान परिंदे कैसे जान पाएगा इन धोखेबाजो के इरादे।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract