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नाबालिक दिल

नाबालिक दिल

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मुझे ऐ नाबालिक दिल

तुमने कितना परेशान कर के रखा है...

तू जानता भी है

कितना हैरान कर के रखा है...

जब भी कुछ नया सोचने मैं जाता हूँ

तू फिर उन्हीं पुरानी

यादों की झोली सिमटे दौड़ा चला आता है

मुझे तू वक़्त बेवक़्त

बेतुके सवालों को पूछ के

सोचने पे मजबूर करता है

मुझे तुमने कितना परेशान कर के रखा है...

कभी कोई चीज अपनी लगने लगती है

तू उसे पराया कर देता है

कभी किसी से दूर जाने की,

हाथ छुड़ाने की कोशिश करता हूँ

तू उसे अपने साथ,

मेरे पास ला के खड़ा कर देता है

मुझे तुमने कितना परेशान कर के रखा है...

पर एक बात है तेरी

जो मानता हूँ मैं भी

जब भी कभी मंदिर,

मिलने खुदा से जाता हूँ तो वो भी

पूछता है पहले तेरे बारे में

मेरी कोई भी शिकायत सुनने से पहले ही

शायद तेरी मासुमियत का कायल है वो भी

इसीलिए तुझे साथ ले के जाता हूँ तो ही

मंजूर होती है कुछ अर्ज दुआ मेरी भी

सच में मुझे ऐ नाबालिग दिल,

मुझे तुमने कितना परेशान कर के रखा है...


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