मेरा पता
मेरा पता
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कई सालों बाद... कल मिली वो..
मुझसे पुछती रही...
कैसे हो, क्या करते हो, कहाँ हो आजकल?
कुछ देर रूककर...
मैने फिर जबाब दिया ..
जिस ऊँची मंजिल में तुम रहती हो
अपने पती और बच्चों के साथ....
ठीक उसी ईमारत के नीचे...
जहाँ दफन है मेरी ख़्वाहिशें, सपने और उम्मीदे ...
बस वहीं खामोश सा रहता हूँ...
तेरी यादों कों संभालते हुऐ