ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी
ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी
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अक्सर याद आते हैं लम्हें, वो जिन में तू मेरे पास थी
ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी
जो चले थे हम साथ कदम अब पीछे छूट गए हैं
ना जाने क्यों वो हमसे इस तरह रूठ गए हैं
देखता हूं अतीत को तो बस तू ही दिखती है
अपनी उस किताब में बस मेरे ही किस्से लिखती है
है बेचैन क्या तू भी या बस मैं ही परेशान हूं
तू कड़कड़ाती धूप है और मैं पेड़ की छाव हूं।