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SOURABH SINGH

Romance

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SOURABH SINGH

Romance

ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी

ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी

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अक्सर याद आते हैं लम्हें, वो जिन में तू मेरे पास थी

ना जाने तू हकीकत थी या बस एक ख़्वाब थी

जो चले थे हम साथ कदम अब पीछे छूट गए हैं

ना जाने क्यों वो हमसे इस तरह रूठ गए हैं

देखता हूं अतीत को तो बस तू ही दिखती है 

अपनी उस किताब में बस मेरे ही किस्से लिखती है

है बेचैन क्या तू भी या बस मैं ही परेशान हूं

तू कड़कड़ाती धूप है और मैं पेड़ की छाव हूं।



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