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Satyendra Gupta

Inspirational

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Satyendra Gupta

Inspirational

ना जाने क्यूँ

ना जाने क्यूँ

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उदास सा मन ना जाने हो जाता है क्यूँ

रोने का मन ना जाने हो जाता है क्यूँ

जमाने से मन रूठने को हो जाता है ना जाने क्यूँ

गमों में डूब जाने का मन हो जाता है न जाने क्यूँ।


क्युकी रिश्ते नही पैसे बड़े हो जाते है

मान नही अपमान बड़े हो जाते है

आदर नहीं अनादर बड़े हो जाते है

पुण्य नही पाप बड़े हो जाते है

सब कुछ समझकर मूर्ख बनने का मन हो जाता है ना जाने क्यूँ।।


कभी बिहार की लता मंगेशकर पूर्णिया देवी को घर से बाहर कर दिया जाता है बुढ़ापे में

कभी द्रोपति को चीरहरण का प्रयास किया जाता है भरी सभा में

कभी सीता का अपहरण कर लिया जाता है अहंकार में

कभी कृष्णा को बंदी बनाने का जुर्रत किया जाता सभा में

ये सब सुनकर मन भटक जाता है ना जाने क्यूँ।


अरे बनो ना दोस्त सुदामा और कृष

्ण के जैसा

अरे बनो ना पितृ भक्त श्रवण के जैसा

अरे बनो ना प्रेम भक्त मीरा के जैसा

अरे बनो ना आज्ञाकारी पुत्र राम के जैसा

अरे बनो ना प्राण जाए पर वचन न जाई राजा दशरथ के जैसा

ये सब नही देखकर मन झुलस सा जाता है ना जाने क्यूँ।


लोग जानते है की आए है तो एक दिन जायेंगे

लोग जानते है की जो कर्म करेंगे वही पाएंगे

लोग जानते है की जो बोएंगे वही काटेंगे

लोग जानते है की आज हमारा कल कोई और आयेंगे

ना रहा है दिन एक जैसे आज हसेंगे कल रोएंगे

फिर भी नही समझ पाते है ना जाने क्यूँ।।


आज आदमी को आदमी से डर लगता है

आज भाई को भाई से डर लगता है

आज दोस्त को दोस्त से दर लगता है

आज पिता को पुत्र से डर लगता है

आज माता को बेघर होने का डर लगता है

ये डर कब मिटेगा नही जान पाता ना जाने क्यूँ।।


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