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Manisha Jangu

Abstract Romance

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Manisha Jangu

Abstract Romance

ना जाने कितनी दफ़ा

ना जाने कितनी दफ़ा

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ना जाने कितनी दफ़ा,

कितने ही खत अधूरे छोड़े हैं।

ना जाने कितनी दफ़ा,

बहते हुए अश्क़ ख़ुद ही रोके हैं।


वेवक़्त ही दस्तक देती है जो तुम्हारी यादें,

भला कोई तो उन्हें मेरा गलत पता दो,

इस वीरान पड़ी दुनियाँ में,

फिर से उन्ही ज़ज़्बातो की अब जगह नही है।


मुझें छू कर गूजरी हैं जो सर्द हवाएं,

भला कोई तो उन्हें बता दो,

कि अब मुझें उनकी महक से भी,

नफ़रत सी हो गई है।


ना जाने कितनी दफ़ा,

दरवाज़े कभी ना खुलने के लिए बंद किए है,

और ना जाने कितनी ही दफ़ा,

यह तुम्हारी सिर्फ़ एक दस्तक पर,

मेरे ना चाहते हुए भी खुल गए है।


भला कोई तो इस खेल को यही विराम दो,

मेरे साथ चल रही यादों को बस यहीं थाम दो।


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