आज
आज
खालीपन से भरे दिनों में,
शोर बहुत गहरा होता है।
मिनट-दर-मिनट बीतते लम्हों में,
ना जाने कितने ही सालों का पहरा होता है।
कभी मुक़म्मल ना हो सके जो सपने,
वो 'अतीत' से मेरे 'आज' को झाँक रहे हैं,
और मेरे 'कल'आने वाले पल,
मेरे 'आज' से ना जाने कितनी उम्मीदें बाँध रहे हैं
लेकिन मेरा 'आज' तो केवल बस यहीं ठहरना चाहता है।
'अतीत' और आने वाले 'कल' को भूल कर
बस बिना किसी शोर के जीना चाहता है।
क्या सिर्फ़ इतनी-सी ही ख्वाहिशे रखना,
मुझे कायर बना देता है।
हाँ, शायद मुझे दुनियाँ की भीड़ से नहीं,
केवल अपने 'आज' से वास्ता रखना है।