न मैं शराब पीता हूँ.....
न मैं शराब पीता हूँ.....
न मैं ,शराब पीता हूँ,
हाँ ! मैं शबाब पीता हूँ -
शौक, हूरों का रखता हूँ,
हटा हिजाब पीता हूँ ।
न मैं प्याले से पीता हूँ,
न मैं साकी से पीता हूँ।
मैं तो कायल हूँ तेरा,
तेरी आँखों से पीता हूँ।
कभी लब से भी पीता हूँ,
जो तेरे ,लब से लब मिलें।
मैं तो बस कायल हूँ तेरा,
तेरी साँसों को पीता हूँ।
ख़ुदगर्ज़ मैं नहीं ,
कुछ ऐसे मैं पीता हूँ –
पहले तुझको पिलाता हूँ ,
और फिर ,मैं पीता हूँ ।
तुझको पिलाता हूँ ,
और फिर ,मैं पीता हूँ ।
अपनी साँसें पिलाता हूँ,
तेरी सासें मैं पीता हूँ।
अलग अन्दाज़ है मेरा,
कुछ ऐसे मैं पीता हूँ –
अपनी ख़ुशबू पिलाता हूँ,
तेरी ख़ुशबू ,मैं पीता हूँ।
मेरे दोस्तों का अक्सर ,
शिकवा ये रहता है -
मैं उनके साथ तो होता हूँ ,
पर कहीं और ही होता हूँ ।
यारों का मुझपर ,
ये इल्ज़ाम होता है।
मैं मयखाने में भी ,
मय से दूर होता हूँ।
न मयखाने में पीता हूँ,
न याराने में पीता हूँ ,
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में -
तेरी आँखों से पीता हूँ ।
कुछ नर्गिसी आँखें,
कुछ शरबती आँखें ,
मयकश मुझे करती हैं ,
तेरी मदमयी आँखें ।
तेरी ज़ुल्फ़ों की चिलमन ,
जब मेरे, चेहरे पे पड़ती है ।
मेरी दुनिया ,जब तेरे
चेहरे पे सिमटती है।
तब कायनात ,पर मैं ,
अलग दुनिया बसाता हूँ ।
यही मयखाना है मेरा –
यहीं पीता-पिलाता हूँ।
गर वक़्त न हो कम -
तो रुक-रुक के पीता हूँ ।
गर महफ़िल हो या बज्म-
तो छुप-छुप के पीता हूँ ।
कभी मैं रुक के पीता हूँ ,
तो कभी छुप के पीता हूँ l
जो माहौल हो कुछ तंग-
तो चुपके, से भी पीता हूँ
ये माना, कुछ अलग है,
मेरा अन्दाज़ जीने का।
ये माना, कुछ अलग है ,
मेरा अन्दाज़ पीने का ।
बस देखा तुझे और -
रग-रग में,दौड़ती तू है ।
ऐसी चढ़ी की अब -
उतरती नहीं तू है।
मैं क्यों पीऊं शराब ,
जब चढ़ती नहीं वो है ?
चढ़ती नहीं वो है,
और उतरती नहीं तू है।
तेरा सूरूर ही-
अब तो मेरी मय है ,
मेरा ग़ुरूर है,
मेरे जीवन की लय है।
तेरा क़ायल हूँ -
तुझमें सराबोर रहता हूँ ।
तेरे नशे में -
मैं ,पुरज़ोर रहता हूँ ।