मुफ्त की रेवड़ियां
मुफ्त की रेवड़ियां
मुफ्त की रेवड़ियों पर तनिक हम - कर लें सोच- विचार,
बनाएंगी ये आलसी हमें और कर देंगी सारा जीवन बेकार।
पर्यावरण संरक्षण हित,बचाने-लगाने होंगे हमको ही पेड़,
पाएंगी मुफ्त कंबल जो तो, ऊन देंगी वे ही सभी भेड़।
बापू ने सिखाया ये हमें, वह है चोरी का अन्न,
बिन मेहनत किए मिल गया, तो न हों प्रसन्न।
बिना किए श्रम के घेरेंगी बीमारियां हजार,
निष्क्रियता कर देगी - हमारा तन-मन बीमार।
मुफ्तखोरी से पहले हम सोच ल़ें हजार बार।
मुफ्त की रेवड़ियों पर तनिक हम -कर लें सोच-विचार,
बनाएंगी ये आलसी हमें और.......................
मुफ्त की सेवाएं ढंग से, न कर पातीं नियोजित काम,
और बेचारे सेवा प्रदाता,होते रहते मुफ्त में ही बदनाम।
अहमियत मुफ्त मिले की न समझें, हो न इच्छित काम,
चिंता करते हैं उस सेवा की, चुकाया हो जिसका दाम।
उत्तम और मुफ्त में एक ही मिलना, तार्किक करें विचार,
मुफ्त की रेवड़ियों पर तनिक हम -कर लें सोच-विचार,
बनाएंगी ये आलसी हमें और.............................
सड़क -शौचालय-जन सुविधाएं, हमें मिलीं हैं बारम्बार,
नहीं कारगर हुईं वे ढंग से, कभी हमने है किया विचार?
जब दिया शुल्क ही नहीं जेब से, करेंगे क्यों तकरार?
जैसा-तैसा अपना लेते, और गिरावट कर लेते स्वीकार।
मुफ्त की रेवड़ियों पर तनिक हम कर लें सोच-विचार,
बनाएंगी ये आलसी हमें और.............................
शुल्क चुकाने पर हुई असुविधा, पर हम ध्यान लगाएंगे,
हल न हुई समस्या गर तो, हम रार तुरंत ही मचाएंगे।
"कौन से खर्चे खरे हैं हमने"? न सोच के चुप रह जाएंगे,
बहा पसीना कमाया निवाला है जो, सिर्फ उसी को खाएंगे,
मुफ्त रेवड़ियों के झांसे में हम, अब बिल्कुल न आएंगे।
निजी विचार मेरा अपना, हम आपको नहीं बहलाएंगे,
आपकी सोच होगी बेहतर ही, कर लेवें स्वयं- विचार।
मुफ्त की रेवड़ियों पर तनिक हम -कर लें सोच-विचार,
बनाएंगी ये आलसी हमें और...............................