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Anushree Goswami

Inspirational

5.0  

Anushree Goswami

Inspirational

मुमकिन है

मुमकिन है

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मुमकिन है तेरी हर बात मुकम्मल न हुई,

तुझे सच बोलने की आज़ादी न थी।

कैद थी आवाज़ किसी पिंजरे में,

खुशियाँ तेरे दर की आदी न थीं।।


धूप ने और छाँव ने भी ठुकरा दिया,

मौसम ने तुझे कुंठित बना दिया।

देख कर चेहरे को आइने में,

तूने खुद ही अपना अक्स मिटा दिया।।


क्या पाया तूने फिर भी, कुछ नहीं,

गंवाया भी क्या तूने, कुछ नहीं।

जो तेरे दर पर रहा, वो तेरा हो गया,

जो नहीं रहा अब दर तेरे, वो कभी तेरा था नहीं।।


सब्र को यूँ, तू क्यों छांटता है,

ऐ मनुष्य, खुद को यूँ क्यों बाटता है।

अंत नहीं, है अनंत तू,

बहती हवा को यूँ क्यों काटता है।।


देख खुद को एक दफा आँखे बंद कर,

वो तस्वीर जो समक्ष है, तू ही है।

शक्ति जो तेरे भीतर वो ही आकाश है,

चल रही जो श्वास भीतर, तू ही है।।


इस जहाँ से तू है, ये जहाँ भी तू है,

मिटा रहा जो, तू है, मिट गया जो, तू है।

चहक ले तू खुलकर, तेरे नूर का कोई मुरीद है,

ढूंढ रहा जिसे तितर - बितर, वो ईश्वर भी तू है।।


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