मुल्क़ बचाने ख़ातिर
मुल्क़ बचाने ख़ातिर
रूप बदलकर कितने
यहाँ सियार बैठे हैं
लूटने को मुल्क
आज बेक़रार बैठे हैं
जान ना पाए
ख़ुद का की क्या सोच है
उनकी
बन के हुक़ूमत में
वो सब समझदार बैठे हैं
करते हैं शराफ़त सी जो बात
रोज़ रोज़ करने को
हम सब का सब शिकार बैठे हैं
चले नहीं आज़ादी में दस कदम भी
जो लोग बनके रियासत का आज
सरदार बैठे हैं
बर्बाद ना हो जाएं कहीं मुल्क
इनके हाथ में बचाने को
मुल्क हम भी तैयार बैठे हैं ।।
