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Madhurima Chandra sarkar

Abstract

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Madhurima Chandra sarkar

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मुक्त

मुक्त

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जब आप जान जाते हैं कि

आप जीवन की दलदल में गले तक धंस चुके हैं

कोई नहीं है जो मसीहा बन कर तारेगा आपको

आपका भाग्य जैसे घिसट रहा था परजीवी कृमि की तरह

वैसे ही घिसटेगा

तब आप केवल प्रतीक्षा करते हैं मृत्यु की 

अपनी क्लान्त मलिन आँखों 

की क्षीण दृष्टि के साथ

एक भयावह दुस्समय जो अशेष 

है वो लील रहा है आपको 

अपने पाश में ले चीर रहा है 

आप छटपटा रहे है आपकी गूंगी चीत्कार

आपके कंठ में अवरुद्ध हो कर घुट रही है

अंतोतगत्वा दलदल ने आपका समूचा भक्षण कर लिया है..

अब आप मुक्त है !!


       


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