वो जीने आयी हैं
वो जीने आयी हैं
उसे महिमा मंडित मत करो
उसकी शान में क़सीदे भी ना पढ़ो
उसे बस खुली हवा में बेख़ौफ़ जीने दो
भयआतुर हो खुद को समेट कर उसे
तुम्हारे सामने से निकलना पड़े गर
तो सोचो.. किस बात का हैं उसे डर !
उसकी अस्मिता उसके आत्मसम्मान
को 'तुम लड़की हो ' जताकर मत कुचलो
उसे मत बताओ कि उसे कितना करना या
कहना चाहिए..अगर तय करनी हैं
तो खुद की सीमाएं तय करो ..
अपनी पाशविकता और अमानवीयता
को काबू करो..कभी तो ऐसा हो
कि उसे अपना मातहत ना समझ
एक इंसान समझो
जो सिर्फ तुम्हारी कसौटी पर खरा उतरने
के लिए नही
तुम्हारे मूल्यांकन का मापदंड बनकर
नही वरन्
अपने समूचे व्यक्तित्व और स्वाभिमान
के साथ जीने आई हैं !!