वो बचपन
वो बचपन
नन्हे बचपन में राजा -रानी की
मायावी कहानी थी
चाचाचौधरी और साबू की जोड़ी
बड़ी ही करामाती थी
नंदन ,चंपक ,टिंकल नन्ही- सी मुठ्ठियों
में भिंचे मुस्कुराते थे
ज़रा सा पिटने पर गला फाड़-फाड़
कर कैसे हम चिल्लाते थे
शान से पापा और चाचा की साईकिल
पर बैठ दुनिया भ्रमण करते थे
और गानों की महफिलों में मत पूछिए
ऊंचे सुर में बड़ा ही बेसुरा गाते थे
बचपन नन्हा था पर कुनबा बड़ा-सा था
दादा- दादी नाना -नानी सब पर
इन नन्हों का ही दबदबा चलता था
नन्हें तो आज भी हैं पर वो बचपन गया कहाँ...
छो
टे छोटे हाथ जो चंदा मामा दूर के छू आते थे..
' टच स्क्रीन 'से खेलते उन हाथों का ठुनकना गया कहाँ
कहाँ हैँ वो बड़े -से आँगन जहाँ..
बिजली जाने पर अंताक्षरी की बैठक जमती थी
कहाँ हैं वो बड़ी सी छतें..
जहाँ लैटे लेटे जल्दी से सो जाओ
नही तो बुड्डा बाबा आ जाएगा
कह कर माँ घुमड़ती थी
अब छोटे- से फ्लैट में मोटा- सा
स्कूल बैग है
जिसे अगली सुबह पीठ पर ढोना हैं
और उस नन्हे बचपन से जिसे सहेजने
वाला अब कोई नहीं
जल्द से जल्द अलविदा कह
अलहदा होना हैं !!