STORYMIRROR

Kamlesh Ahuja

Abstract

5.0  

Kamlesh Ahuja

Abstract

मुखौटे

मुखौटे

1 min
358


आधुनिकता के,

बदलते परिवेश में,

मुख़ौटे लगाकर घूम रहे,

लोग भिन्न-भिन्न वेश में।


काम हमारा जिससे पढ़ता,

दिल उसके लिए धड़कता।

जो ना हमारे काम आए,

वो हमको कभी ना भाए।


लाभ हमें है जिससे मिलता,

उसका हमनें फोन घुमाया।

बधाइयाँ दीं ढेर सारी और

आभारों का अंबार लगाया।


राह हमें जिसने दिखलाई,

और मंजिल तक पहुँचाया,

अफसोस नाम उसका,

जुबां पर कभी न आया।


परदेशी होकर रह गए,

हम अपने ही देश में।

मुख़ौटे लगाकर घूम रहे,

लोग भिन्न-भिन्न वेश में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract