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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

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मुझमें आशियाना मत ढूँढ़ो

मुझमें आशियाना मत ढूँढ़ो

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मैं नदी मुझमें कहां,

तुम आशियाना ढूंढते,

ठहराव है मुझमें नहीं,

तुम शामियाना ढूंढते,


मेरी रास्ते की एक मंज़िल,

एक ही मनमीत है,

इन रास्तों से दूर मेरी,

उससे ही केवल प्रीत है,


चल रही हूँ मैं निरत,

उस प्रीत को ही ढूंढते,

मैं नदी मुझमें कहाँ,

तुम आशियाना ढूंढते,


रास्तों में यूं बिखर,

मैं लक्ष्य खो सकती नहीं,

तुमसे मिलकर ज़िन्दगी से,

दूर हो सकती नहीं,


मुझमें क्यों तुम,

ज़िन्दगी का मुस्कुराना ढूंढते,

ठहराव है मुझमें नहीं,

तुम शामियाना ढूंढते।


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